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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - २७ ; उद्धव जी और विदुर जी की भेंट

श्रीमद्भागवत - २७ ; उद्धव जी और विदुर जी की भेंट

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परीक्षित ने पूछा कि विदुर का 

मैत्रेय से समागम कहाँ और कब हुआ 

शुकदेव जी तब सब लगे बताने 

कहाँ और किस तरह ये सब हुआ। 


धृतराष्ट्र ने अपने पुत्रों के 

पालन पोषण के लिए जब 

पाण्डु पुत्रों के भेजा लाक्ष्य भवन में 

आग उनको लगवा दी थी तब। 


द्रोपदी के केश थे खींचे 

दुश्शाशन ने भरी सभा में 

द्रोपदी के थे आँख में आंसू 

पर नहीं रोका ये धृतराष्ट्र ने। 


दुर्योधन ने जीता राज्य 

अन्यायपूर्वक भोले युधिष्ठर से 

पांडव जब अपना हिस्सा मांगें 

नहीं दिया था दुर्योधन ने। 


भगवान कृष्ण पांडवों की और से 

जब भरी सभा में आये 

कुरुराज से अपने कथन का 

वो कोई आदर न पायें। 


उनके सारे पुण्य नष्ट हुए 

समझाया विदुर ने धृतराष्ट्र को 

जो ज्ञान दिया उन्होंने 

विदुर नीति हैं कहते उसको। 


कहा महाराज आप हिस्सा दे दें

युधिष्टर को जो हक़ है उसका 

भीम और भाई हैं क्रोध में 

श्री कृष्ण भी पक्ष लें उनका। 


कृष्ण ने राजाओं को आधीन किया 

ब्राह्मण देवता पक्ष में उनके 

दुर्योधन जो पुत्र आपका 

दोष की तरह है घर में आपके। 


द्वेष करे वो श्री कृष्ण से 

आप भी हैं श्रीहीन हो रहे 

अगर चाहो कुल की कुशल तो 

दुर्योधन को त्याग दीजिये। 


दुर्योधन को क्रोध आ गया 

कर्ण, दुश्शाशन , शकुनि को भी 

दुर्योधन बोला, दासी पुत्र तुम 

निकल जाओ यहाँ से अभी। 


जिनके टुकड़े खाकर जीता है 

उन्ही के चले प्रतिकूल ये 

शत्रु का काम बनाना चाहे 

ना लो प्राण पर जाये नगर से। 


बुरा ना माने कोई विदुर जी 

सोचें ये माया भगवान् की 

धनुष द्वार पर रखा उन्होंने 

हस्तिनापुर से चल दिए तभी। 


तीर्थों में थे वो विचरते 

व्रतों का पालन वो करते थे 

प्रभास क्षेत्र में पहुंचे वो तब तक 

युधिष्टर राज्य करने लगे थे। 


कौरव बंधुओं का विनाश सुना वहां 

सरस्वती तट पर वो आये 

बहुत तीर्थों का सेवन किया 

यमुना तट पर फिर वो जाएं। 


वहां दर्शन किया उद्धव जी का 

भगवन कृष्ण के सेवक थे वो 

पूछा कृष्ण,स्वजन कुशल हैं 

और पांडव सब कैसे हैं वो। 



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