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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१६३; राजा बलि की स्वर्ग पर विजय

श्रीमद्भागवत -१६३; राजा बलि की स्वर्ग पर विजय

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राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन

श्री हरि स्वामी हैं सबके

फिर तीन पग पृथ्वी क्यों मांगी

दीन, हीन की भांति बलि से।


तथा जो कुछ भी वो चाहते थे

वह सब मिल जाने पर भी

बलि को क्यों बांधा उन्होंने

जानना चाहते ये हम सभी।


याचना स्वयं भगवान् के द्वारा

और बंधन एक निरपराध का

ये दोनों कैसे संभव हैं

दूर करें हमारी ये शंका।


शुकदेव जी कहें, हे परीक्षित

बलि को पराजित किया इंद्र ने

उनकी सम्पति भी छीन ली

और प्राण भी ले लिए उनके।


संजीवनी विद्या से जीवित कर दिया

तब शुक्राचार्य जी ने उन्हें

इसपर गुरु और समस्त

भृगुवंशी ब्राह्मणों की

राजा बलि सेवा करने लगे। 


इससे भृगुवंशी ब्राह्मण प्रसन्न हुए 

उन्होंने महाभिषेक की विधि से 

राजा बलि का अभिषेक कर 

विशवजीत यज्ञ करवाया फिर उनसे। 


अग्नि देव की जब पूजा हुई 

एक सुंदर रथ निकला उस कुण्ड से 

हरे रंग के घोड़े उसमें 

युक्त वो सिंह के चिन्ह से। 


सोने के पात्र वाला धनुष और 

तरकश जो खाली न हो कभी 

एक सुंदर दिव्य कवच भी 

निकला था उस अग्नि से तभी। 


दादा प्रह्लाद ने एक माला दी 

जिसके फूल कुम्हलाते न कभी 

तथा एक दिव्य शंख दिया 

गुरु शुक्राचार्य ने भी। 


युद्ध की सामग्री प्राप्त कर 

बलि ने ब्राह्मणों को दक्षिणा दी 

और अपने दादा प्रह्लाद के 

किया चरणों में नमस्कार भी। 


शस्त्र और माला ग्रहण कर 

सवार हो गए दिव्य रथ पर 

उनके साथ साथ हो लिए 

दैत्य सेनापति सेना लेकर। 


इंद्रपुरी अमरावती पर 

सेना ने कर दी चढ़ाई 

अद्भुत शोभा है इस नगरी की 

विशवकर्मा ने है बनाई। 


स्त्रिओं का यौवन और सौंदर्य 

स्थिर रहता है इस पूरी में 

अधर्मी, दुष्ट, जीवद्रोही, ठग आदि 

इस पूरी में नही जा सकते। 


बलि ने घेरा अमरावती को 

सेना को लेकर, सब और से 

ध्वनि सर्वत्र फेल गयी थी 

शंख बजाय जब बलि ने। 


ये देख वहां पर इंद्र 

गुरु बृहस्पति के पास गए 

कहें, भगवन इस बार बहुत बड़ी 

तैयारी की शत्रु बलि ने। 


शक्ति उसकी बहुत बढ़ गयी 

पता नहीं ये कैसे हुआ 

मैंने देखा बलि की शक्ति को 

कोई भी रोक नहीं सकता। 


मुझे बताएं क्या कारण इसका 

उसके शरीर, मन और इन्द्रियों में 

इतना बल कैसे आ गया 

और तेज जो आया उसमें। 


देवगुरु बृहस्पति जी ने कहा 

ब्रह्मवादी भृगुवंशिओं ने 

बना दिया खजाना शक्तिओं का 

महान तेज देकर उसे उन्होंने। 


जैसे काल के सामने प्राणी 

नहीं ठहर सकता, वैसे ही 

बलि के सामने भी ठहर न सके 

भगवान् को छोड़ और कोई भी। 


इसलिए तुम लोग सभी 

छिप जाओ स्वर्ग छोड़कर कहीं 

और जब शत्रु का भाग्यचक्र पलटे 

प्रतीक्षा करो उस समय की। 


इस समय ब्राह्मणों के तेज से 

बढ़ गयी है शक्ति बलि की 

तिरस्कार करेगा जब उन ब्राह्मणों का 

नष्ट हो जाएगी ये शक्ति। 


देवताओं के स्वार्थ, परमार्थ के 

ज्ञाता थे गुरु बृहस्पति जी 

स्वेच्छानुसार रूप धारण कर देवता 

स्वर्ग छोड़ चले देवता सभी। 


तब अपना अधिकार कर लिया 

अमरावतीपुर पर बलि ने 

और फिर तीनों लोकों को 

भी जीत लिया था उसने। 


बलि जब विशवविजयी हो गया 

तब उसको फिर भृगुवंशिओं ने 

सौ अशव्मेघ यज्ञ कराये 

उनकी कीर्ति फैली दिशाओं में। 


चन्द्रमाँ की जैसे नक्षत्रों में शोभा 

वैसी शोभा प्राप्त हुई उनको 

उदारता से उपभोग करने लगे 

अपनी समृद्ध राज्यलक्ष्मी का वो। 


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