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Kamal Purohit

Classics

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Kamal Purohit

Classics

किस लिए करता

किस लिए करता

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जो मेरा है तो मैं इंकार किस लिए करता?

अगर नहीं है तो अधिकार किस लिए करता?


चला यूँ आया हूँ महफ़िल से तेरी रुसवा मैं।

वजूद अपना वहाँ ख़्वार किसलिए करता?


लगा ग्रहण जो तेरे मेरे इश्क़ में दिलबर।

ग्रहण लगा है तो स्वीकार किस लिए करता?


सितमगरों के सितम दर्द देते है मुझको।

वो अपने निकले मैं फिर वार किस लिए करता?


फ़लक है छत मेरी, धरती बिछौना है मेरा।

न कोई संगी है आगार किस लिए करता?


शुमार है ये नमस्कार मेरी आदत में।

मिला न कोई नमस्कार किस लिए करता?


वो चाहते है कि खामोशियां मैं ओढ़े रहूँ।

खिलाफ उनके मैं गुफ़्तार किस लिए करता?


मेरे ग़मों से खुशी मिल रही जहां को "कमल"

खुशी का फिर भला इज़हार किस लिए करता?


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