ख़ज़ाना ख़ुशी का
ख़ज़ाना ख़ुशी का
मैं तो बस ढूँढता हूँ बहाना...
कि कहाँ है वो ख़ज़ाना...
चाहे किसी भी धर्म का उत्सव
किसी की शादी का नाच गाना
किसी फ़िल्म के हीरो की जीत
और जनता का ताली बजाना
कहीं किसी की तड़पती भूख को
एक वक़्त का निवाला मिल जाना
या किसी थके हारे राही को
अंततः लक्ष्य का मिल जाना
किसी के पिताजी का देर
से ही सही घर लौट आना
किसी के परिवार का
एक साथ खाना खाना
पड़ोसी के बेटे का
कक्षा में टॉप आ जाना
वो बिना बात गीली आँखों का
बरबस मुस्कुरा जाना
हाँ मैं ख़ुश हो जाता हूँ औरों की ख़ुशी में
या कभी कभी यूँ ही बिना बात के
क्योंकि ढूँढ लिया है मैंने भी...
औरों की ख़ुशी में ही अपना ख़ज़ाना