माँ चालीसा-1
माँ चालीसा-1
एक प्रयास भर है माँ की महिमा गाने का।
श्रवण न सही... श्रवण- सा बन जाने का ।।
जय माता ममता का सागर।
छलके तेरे प्रेम की गागर।।
दया से तेरी दया भी हारी।
प्रकृति तेरी सदा उपकारी।।
धरा की तरह धरा क्षमा है।
तू ही माँ त्रिदेव की माँ है।।
मास नौ भार पेट में ढ़ोती।
संग तेरे कभी हँसती-रोती।।
दुख-तकलीफ सही सब हँसकर।
जन्म दिया है स्वयं पिघलकर।।
फिर तेरे मल से निर्मल हो।
साथ तेरे बच्चा हर पल हो।।
खुद को भूल गई महामाई।
चैन-नींद की चिता जलाई।।
होम से खुश होते देवता।
तुझपर सदा प्रसन्न है ये माँ।।
होमवर्क तेरा या माँ का।
माँ है फिर क्यों बाल हो बाँका।।
काश इतना योग्य हो जाऊँ।
तेरी महिमा मैं गा पाऊँ।।
सबसे बड़ा मंत्र है 'माँ' ही।
भजने में ना करो कोताही।।
ब्रह्मा-विष्णु-महेश ने गाई।
महिमा नहीं गई बताई।।
दर्द तुझे जब भी हैं सताते।
आँसू माँ के नेत्र से आते।।
हार गया तू जब भी कभी।
ढ़ाँढ़स तुझे, रोई अंदर ही।।
शादी में तेरी माँ नाची।
खुशियों की सब पोथी बाँची।।
नया दौर जीवन का आया।
माँ ने अपना फर्ज निभाया।।
