सिंधु में रहकर...
सिंधु में रहकर...
सिंधु में रहकर मगर से बैर करता हूंँ ।
नहीं मैं वो, जोड़ के हाथ अपनी खैर करता हूंँ।
सिंधु में...
जहाँ अन्याय होता है,
जहाँ पर न्याय रोता है।
धर्म की हार होती है,
अधर्मी विजयी होता है।
वहीं अधर्म-अन्याय से मैं ज़ोर करता हूँ।
सिंधु में रहकर मगर से बैर करता हूँ।
भले ही दुश्मनों की फौज़
आ जाए सज-धजकर।
हकीकत दोस्तों की सामने
आ जाए खुल-खुल कर।
किंतु ना हार मानूँगा,
नयी एक रार ठानूंगा।
रण में जो आज हूँ आया,
नहीं अब यार भागूँगा।
मनुज जीवन मिला,
इस जीवन का सदुपयोग करता हूँ।
सिंधु में रहकर मगर से बैर करता हूँ।
भले हो जाए धड़ से
दूर सिर मेरा,
भले कट जाएं दोनों हाथ,
और ये पांव फिर मेरा।
मुझे बस रण में मरना
अब तो है यारों।
भले तुम साथ दो
या तुम भी मुझको ही मारो।
है जब तक सांस, पापों से लड़ने का प्रण मैं करता हूंँ।
सिंधु में रहकर मगर से बैर करता हूंँ।