वो अजनबी
वो अजनबी
वो अजनबी
विधा-कविता
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बात वर्षों पुरानी है, गया था हरिद्वार,
कांवर कांधे लानी थी,हर्ष मन हजार।
दिल में अरमान बड़े, जिंदगी दो चार,
घर से चलते वक्त, मिला बहुत प्यार।।
लगाके गोता गंगा में,चल पड़ा घरद्वार,
धीरे धीरे बढ़े आगे,अजनबी था मिला,
कष्ट में वह बेचारा, कदम बढ़ाता धीरे,
पूछा इक प्रश्र, लगा मुंह उसका सीला।
वो अजनबी लगा फिर, मुख से कहने,
कष्ट में था इतना, आंसू लगे फिर बहने।
कहा उससे , कष्ट सफर में पड़ते सहने,
कष्ट मिले तन जो, मान लो उन्हें गहने।।
बढऩे लगे दोनों संग,बातें हुई यूं अनेक,
दोनों के गांव अलग थे,पर मंजिल एक।
पैरों में छाले पड़े थे, दर्द में वो कहराये,
कभी शिव का नाम ले,कभी हाय हाय।।
बातों बातों में उसको,मिला एक सहारा,
पहले में बुरा लगा पर फिर लगा प्यारा।
चलते गये धीरे धीरे,वो फिर लगा चलने,
मेरे प्रति अजनबी में,प्यार लगा था पलने।।
300 किमी दूरी पहले लगती उसको दूर,
पर मुझसे मिला सहारा, टूट गया गरुर।
दर्द माथे का खत्म, आया चेहरे पर नूर,
अब तो पहुंचे मंजिल पास,बस कुछ दूर।।
अब तो मंजिल पास थी,हुआ वो खुश,
देखकर मंजिल पास, खत्म हुआ दुख।
चेहरे पर रौनक आई, बोला मेरे भाई,
सहारा तेरा मिला, मंजिल पास आई।।
चंद किमी दूर रहे,रास्ते हुये थे अलग,
प्रसन्नता ने मुझे घेरा, खुशियां रग रग।
शिव को रटते,वो अजनबी चला गया,
नाम तक नहीं पूछा, लगता वो नया।।
नहीं भूले हैं उसको,वो अजनबी था,
हिम्मत से काम लेता, जोश नया था।
कौन था पता नहीं, यादें अभी ताजा,
बस गया दिल में, बन गया वो राजा।।