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Anjali Jha

Drama Romance Tragedy

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Anjali Jha

Drama Romance Tragedy

कभी - कभी सोचता हूं

कभी - कभी सोचता हूं

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अक्सर अकेले में मैं यह सोचा करता हूं

कि कुछ कमी रह गई थी शायद

या जितना मैंने अपना वक्त दिया वो काफ़ी नहीं था क्या

अगर मैं नासमझ था तो मुझे समझा दिया होता

या मैं जितना तुम्हें समझ पाया वो काफ़ी नहीं था

अक्सर तेरी ही शिकायत थी मुझसे कि तुम कभी जताते नहीं हो

प्यार है अगर मुझे तुमसे तो तुम जताते क्यों नहीं हो

अक्सर लोग कहते हैं कि प्यार में लोग आंखों के इशारे भी समझ जाते हैं

फ़िर मैं क्या मोहब्बत की तुमसे नुमाइश करता

जितना मेरे आंखों में तुमने देखा वो काफ़ी नहीं था क्या

अक्सर मेरे पास बैठकर मेरी धड़कने को सुना करती थी

उसमें कुछ कमी नज़र आई थी क्या

यहीं मैं सोचता रहता हूं, कि क्या कमी रह गई थी

क्या जितना था वो काफ़ी नहीं था क्या?



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