एक ख़्वाब
एक ख़्वाब
एक ख़्वाब मैंने भी देखें थे ऐ ज़िन्दगी
जब पसरा था सारे जगत में रात का अंधियारा
मैं उन सितारों के साथ लुकाछिपी खेलती रही
जब हुआ सुरज का उजाले से मिलन
मैं सपनों को सच करने भागती रही
हर दिन सुरज भी आया और चंदा भी आया
हर दिन उजाला भी आया और अंधेरा भी आया
रात के अंधेरे ने टिमटिमाते सितारों से भी मिलाया
और दिन के उजाले ने सूरज के तपिश से भी मिलाया
पर मैं राह उसका तकती रही पर वह नहीं आयी
देखने को तरसती रही हरदम मेरी आंखें
पर अब तू ही बता ऐ ज़िन्दगी क्या तू कभी होगी अपना
अब सच बता ऐ ज़िंदगी क्या मैं थी कभी तेरी अपनी।