मैं चांद और वो सूरज
मैं चांद और वो सूरज
कल रात मेरी मुलाकात एक अजनबी से हुई
बात चली तो पता चला मैं चांद और वो सूरज
भोर होते वो आकाश में बिखर जाता है
और दिन ढलते ही मैं उसके ही रौशनी में ढ़ेर हो जाती हूं
वो गर्म होकर अपनी ऊष्मा में जलाता है
एक मैं हूं जो अपने ठंडी से सबको रिझाती हूं
वह हर रोज़ आसमां में दखल देता है
और मैं पूर्णिमा के दिन ही पूरी हो पाती हूं
और धीरे-धीरे अमावस्या तक गायब हो जाती हूं
एक ही आसमां में सिक्के के दो पहलू हैं
एक गर्म होकर भी सबके बहुत काम आते हैं
एक मैं हूं जो बस प्रेमियों को ही निहारने के काम आते हैं।