द्वन्द
द्वन्द
मेरे दिल की
किताब में,
आदि से अंत
की दूरी…!
कोई ना नाप सका,
उठते मन के
कोलाहल का,
राज कोई न
भांप सका,
जब भी लिखने चाहे
उद्गार दिल के…!
मौन ऐसा ठहरा...
गटकता रहा गरल,
ना आलाप सका।
मेरे दिल की
किताब में,
आदि से अंत
की दूरी…!
कोई ना नाप सका,
उठते मन के
कोलाहल का,
राज कोई न
भांप सका,
जब भी लिखने चाहे
उद्गार दिल के…!
मौन ऐसा ठहरा...
गटकता रहा गरल,
ना आलाप सका।