सावन
सावन
सावन सज धज आया,
रुत प्रीत की लाया,
चित्त ये मेरा गुनगुनाए,
ये रुत मुझे अपना बनाए,
कोयल भी गाने लगी,
कलियां भी खिल उठी,।।
बरगद की डाली पर झूला,
महका पत्ता बूटा बूटा,
ढोलक की थाप और सावन के गीतों की मिठास,
इत उत डोले मन भूल के घर और घाट,
उम्र का नाज़ुक पड़ाव था आया,
और सावन अठखेली था ले आया।।
मौन हूं मैं सुनकर गुंजन,
तृप्त हो गई हूं बेरंग हो कर,
सखियां तेरा नाम लेकर छेड़े,
रिमझिम फुहारों में पैर मेरे बेसुध है झूमे,
इस सावन गीत मैं प्रियतम पर लिख दूं,
और सारी शिकायत मैं कह दूं,
कोई चित्रकार रंगो संग है निकला,
चुपके से कण कण को रंग गया,
जोगी, योगी, राजा प्रतापी सब बल अपनी इंद्रियों पर खो बैठे,
कवि मुनि जन सावन को काव्य लिख बैठे,
मन की व्याकुलता को दिशा पुनः प्राप्त हो गई,
ये सुहावनी बेला भी थक कर निंद्रा में खो गई।।