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Archana Verma

Drama

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Archana Verma

Drama

किराये का मकान

किराये का मकान

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531

बात उन दिनों की है

जब बचपन में घरोंदा बनाते थे

उसे खूब प्यार से सजाते थे

कही ढेर न हो जाये

आंधी और तूफानों में

उसके आगे पक्की दीवार

बनाते थे।


वख्त गुज़रा पर खेल वही

अब भी ज़ारी है

बचपन में बनाया घरोंदा

आज भी ज़ेहन पे हावी है।


घर से निकला हूँ

कुछ कमाने के लिए

थोड़ा जमा कर कुछ ईंटें

उस बचपन के घरोंदे

में सजाने के लिए।


यूं बसर होती जा रही है ज़िन्दगी 

अपने घरोंदे की फ़िराक में

के उम्र गुज़ार दी हमने

 इस किराये के मकान में।


अब तो ये अपना अपना

सा लगता है

पर लोग ये कहते हैं

चाहे जितना भी सजा लो

किराये के मकान को

वो पराया ही रहता है।


ज़रा कोई बताये उनको

की पराया सही पर

मेरे हर गुज़रे वख्त का

साक्षी है वो

भुलाये से भी न भूले

ऐसी बहुत सी यादें

समेटें है जो।


बहुत कुछ पाया और गवाया

मैंने इस किराये के मकान में

इसने ही दिया सहारा जब

मैं निकला था अपने घर की

फ़िराक में।


मैं जानता  हूँ के एक दिन

ऐसा भी आएगा

जब मेरा अपने घरोंदे

का सपना सच हो जायेगा

और मेरा ये किराये का

मकान फिर किसी और का

हो जायेगा।


मैं जब कुछ भी नहीं था

तब भी तू मेरे साथ था

आज जब मैं कुछ हो गया

तो तेरा मुझसे रिश्ता न भुला

पाऊँगा।


तुझे सजाया था पूरे

शानो शौक़त से

तू किसी का भी रहे

पर तुझसे अपनापन

न मिटा पाऊँगा।


मैं देखने आया करूंगा तेरा

हाल फिर भी

गुज़रा करूंगा तेरी गलियों से

रखने को तेरा दिल भी।


मैं एहसान फरामोश नहीं

जो तेरी पनाह भुला पाऊँगा

अपने अच्छे बुरे दिन को याद

करते

हमेशा तुझे गुनगुनाऊँगा।


उस बचपन के  घरोंदे की हसरत

को साकार करने में 

तेरी अहमियत सबको न

समझा पाऊँगा।


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