पत्नी का अरमान
पत्नी का अरमान
हर बीवी हर पत्नी का होता रहा है अरमान
पति का बटुआ,
मांगती थी एक दुआ जो होती रही है कबूल,
कभी खाली न हो सदा भरा रहे हमारे पति का बटुआ,
यारों दोस्तों और कुछ दें न दें बस मांगे यही दुआ,
कि भरा रहे हमारे पति का बटुआ,
महीने की हर पहली तारीख तो होता था
उनका बटुआ अज़ीज़,
बनाती थी हर पत्नी उस दिन खाना बड़ा लज़ीज़,
एक चाहत रहा है और राहत भरा है पति का बटुआ,
वाह-वाह बटुए को खुद पर नाज़ रहा है,
घर का शासक और प्रशासक रहा है,
वो बड़ा ही नख़रेबाज़ रहा है पूछो कौन,
अरे और कौन हमारे पति का बटुआ,
हर बीवी हर पत्नी का होता रहा है
अरमान पति का बटुआ,
है यही दुआ कभी खाली न हो
सदा भरा रहे हमारे पति का बटुआ,
अभी तक थे पति-पत्नी तो सुख से था संसार,
पर अब जब बढ़ने लगा परिवार ,
तो सीमित लगने लगा पति के बटुए का आकार,
कई थे नन्हे-नन्हे बच्चों के अरमान पर बटुए
ने अपनी सीमा का कर दिया था ऐलान,
इस बटुए की सीमा ने रोक दी थी परिवार
के परिंदों की उड़ान,
देख रही थी मूक रह कर बच्चों के घुटते अरमान,
सोच में थी कैसे करे सीमित आय पर प्रहार,
कई रातों की नींदें गयीं करने में सोच-विचार,
कैसे करूँ पर क्या करूँ कि फले-फूले परिवार,
आखिर सोचा और मिल गया समाधान,
कैसे होंगे पूरे परिवारवालों के अरमान ,
करने को अपनी मुश्किल आसान ,
घर से बाहर जाना होगा,
सोचते वक़्त भी मांगती थी यही दुआ कि
भरा रहे हमारे पति का बटुआ,
मन में रख कर विश्वास भर कर
खुद में गहन आत्मविश्वास,
घर से बाहर कदम रखा उस गृहलक्ष्मी ने,
जानती थी सहना पड़ेगा सामाजिक प्रतिकार,
पर समाज से ऊपर नज़र आया परिवार,
मिलकर बोझ उठाने से संवर जायेगा उसका संसार,
सोच रही थी पति के हर दुःख में निभाया है साथ,
आज चाहती है इस नए कदम पर अपने पति का साथ,
मिल जाएंगे दो हाथ और दो बटुओं का साथ,
जीवन खिल जायेगा हर अरमान पूरा होगा,
इस प्रकार सफल हो जाएगी उसकी पढाई,
जिस दिन पत्नी अपनी पहली लायी कमाई,
घर में खुशियों कि दिवाली आयी,
क्यूंकि हो चुकी थी पति-पत्नी के बटुए कि सगाई,
फिर भी मांगती है हर पत्नी यही दुआ ,
भरा रहे उसका और उसके पति का बटुआ।
