STORYMIRROR

Phool Singh

Drama Classics Inspirational

4  

Phool Singh

Drama Classics Inspirational

मेरा परिचय

मेरा परिचय

1 min
214

पूछते हो क्या मेरा परिचय, मिट्टी का हूँ एक खिलौना

पंचतत्वों से मिलकर बनता, फिर उसमें ही मिलने चला।


जन्म-मरण के बीच का सफर, जीवन का स्वरूप बना 

चित्रित करता विभिन्न कलाएँ, न एक भेष में कभी रहा।


आपदा-विपदा सहता हरदम, विरह-वेदना संग दर्द, सुख-दुख से भरा पड़ा

कवि हृदय कुछ कहना न पाता, बिन रंग-रस से सब सूना पड़ा।


लालित्य नहीं कहीं जीवन में, समस्याओं से जकड़ा हुआ

ज्वाला धधकती अन्तर्मन में, पर गंद, मलिनता उसमे भरा।


कहीं प्रीतम की विरह-वेदना, कोई अहं-लोभ की सूली चढ़ा

बेसुध करती विरह की हाला, उलझन में हर जीव खड़ा।


साहित्यों ने खोया अपना रुतबा, सोशल मीडिया का ज़ोर बड़ा 

भूली-बिसरी अब पुरानी बातें, मजेदार किस्सों ने अपना स्वाँग रचा।


ग्राहक को ढूँढे मतवाला साकी, कहीं नाले में पीयेँ पड़ा 

सुनहला सपना टूट न जाये, धन-वैभव में मोह है बड़ा।


मौन कलम और मौन भाव है, शब्दों का सागर बिखरा पड़ा 

क्या लिखूँ और कैसे लिखूँ, जब अपना परिचय न मुझको पता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama