मेरा परिचय
मेरा परिचय
पूछते हो क्या मेरा परिचय, मिट्टी का हूँ एक खिलौना
पंचतत्वों से मिलकर बनता, फिर उसमें ही मिलने चला।
जन्म-मरण के बीच का सफर, जीवन का स्वरूप बना
चित्रित करता विभिन्न कलाएँ, न एक भेष में कभी रहा।
आपदा-विपदा सहता हरदम, विरह-वेदना संग दर्द, सुख-दुख से भरा पड़ा
कवि हृदय कुछ कहना न पाता, बिन रंग-रस से सब सूना पड़ा।
लालित्य नहीं कहीं जीवन में, समस्याओं से जकड़ा हुआ
ज्वाला धधकती अन्तर्मन में, पर गंद, मलिनता उसमे भरा।
कहीं प्रीतम की विरह-वेदना, कोई अहं-लोभ की सूली चढ़ा
बेसुध करती विरह की हाला, उलझन में हर जीव खड़ा।
साहित्यों ने खोया अपना रुतबा, सोशल मीडिया का ज़ोर बड़ा
भूली-बिसरी अब पुरानी बातें, मजेदार किस्सों ने अपना स्वाँग रचा।
ग्राहक को ढूँढे मतवाला साकी, कहीं नाले में पीयेँ पड़ा
सुनहला सपना टूट न जाये, धन-वैभव में मोह है बड़ा।
मौन कलम और मौन भाव है, शब्दों का सागर बिखरा पड़ा
क्या लिखूँ और कैसे लिखूँ, जब अपना परिचय न मुझको पता।
