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Rupali Nagar ( Sanjha)

Drama

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Rupali Nagar ( Sanjha)

Drama

अलहदा

अलहदा

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दूरियाँ हो हजारों मीलों की, दिल ये मानते नही...

बस्तियाँ आबाद ही रहती है,बस;साथ रहते नहीं..

रहतीं थी कोई फिक्र नहीं,गम भी थे कोई नहीं..

कितना हसीं दौर था वो, क्यों लौट के आता नहीं.


बहुत कुछ था हाथ मगर, एक तुम्हारा हाथ नहींं..

झोली थी भारी,बोझ उठाने को; तुम थे साथ नही

सफर होता सुहाना, मगर रास्ते ही थे सही नही

तकलीफें सही बहुत, थकन है कि कम होती नही


भीड़ में खोजा था तुम्हें, पकड़ पाये फिर भी नही

इस तरह ओझल हुए, दिख पाये फिर कभी नही

हैरत है ;किसी बात पर, हैरत भी अब होती नही

बारिश का मौसम है ,पर बादलों में भी नमी नही


मान लिया हो जैसे , कि ये किस्मत ही थी नही

मिला नहीं कर्ण ,क्योंकि मैं ही थी दुर्योधन नही

जैसा सोच रहे थे तुम ,वैसी मैं कभी थी ही नही

इसीलिए तो बात जैसी ,बात कभी बनी ही नही !


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