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हे ईश्वर

हे ईश्वर

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अपने बनाए बंदो से कैसे.

सरेआम मार खाए जा रहा तू !


तेरे नाम पे खेल होते हैं कैसे,

शामिल हुए बिना, प्यादा बना जा रहा तू !


देख गुल यहाँ खिलते हैं कैसे,

बिना आबो-हवा, बस हैरान हुए जा रहा तू !


मुखौटे हज़ारों पहना दिए कैसे,

ख़ुद अपने आप से लड़ा जा रहा तू !


धर्मों ने खाँचों में बाँट दिया कैसे,

उन्माद के नंगे नाच को देखता जा रहा तू !


दे-देकर लाख तेरी दुहाई कैसे,

घोला जो ज़हर, ख़ामोशी से पिए जा रहा तू !


गढ़ कर पत्थर की मूरतों में कैसे,

नित नए नियमों को, बुत बना देखे जा रहा तू !


किताबों में तेरे मौन को, शब्द दिए कैसे,

ख़ुद अपने आप से लड़ा जा रहा तू !


मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारों में कैसे,

बंदी बन, कठोर कारावास भोगे जा रहा तू !


ये क्या हो रहा है और कैसे,

हे ईश्वर, यूँ हर हाल में क्यूँ जिए जा रहा तू !


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