Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Phool Singh

Drama Tragedy

4  

Phool Singh

Drama Tragedy

छपाक

छपाक

1 min
214



बड़ी शिद्दत से मुझको भी 

मात-पिता ने पाला था 

नाज था उनको मुझ पर भी 

मेरा, सुंदर चेहरा प्यारा था।।


नफरत से अंजान थी मैं 

जैसे परी लोक से आई थी 

जहर भरा क्यूँ इतना मन में 

तुमको क्यूँ ना भायी थी।।


लिखने किस्मत तैयार खड़ी मैं  

पढ़ी-लिखी मैं शिक्षित थी 

छपाक सी मेरी जिंदगी कर दी 

मुझसे कैसी दुश्मनी थी।।


क्यूँ जलाया चेहरा मेरा 

पहचान थी जो मेरी शख़्सियत की 

चेहरा ढकने को मोहताज हुई मैं 

बर्बाद मेरी क्यूँ जिंदगी की।।


ना जी सकूँ मैं ना मर सकूँ मैं 

ऐसी हालत तुमने की 

न्याय मांगती दर-दर डोलूँ 

क्या नादान होना मेरी गलती थी।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama