हे कृष्ण
हे कृष्ण
कृष्ण ही मेरे प्रियतम प्यारे
मन मंदिर में रखती पास
मीरा बन मैं इत-उत डोलूँ
भटके न भय-दुख भी पास।
शीश पर उनका हाथ मेरे है
पाप-पुण्य की फिर क्या हो बात
भव्य मूर्ति उनकी दिल में बसी है
रहते हर पल मेरे साथ।
स्वराज दिलाते, मान दिलाते
भीड़ भी आती मेरे पास
दुख-दर्द हरते वही सभी के
पर, मुझे बनाते सबकी खास।
त्याग दिया सब उनकी खातिर
समर्पित कर्मफल और हर एक आस
मिलन से उनके बाँट जोहती
मृत्यु न आती जब तक पास।
उधारक जो उद्धार ही करते
भक्तो की रखते सबकी लाज
माया कभी भी छू सके न
वही कराते भवसागर पार।
