मेरा व्यक्तित्व
मेरा व्यक्तित्व
जाने-अंजाने दुख पहूंचा जिसे
बातों से मेरी जब भी कभी
छमा मांगता तह दिल से
ह्दय में दुख देने की न भावना रही ।।
जैसा बनाया ईश्वर ने
वैसी स्वभाव की मेरे करनी रही
बहुत संभाला अपने मन को
पर होनी-अनहोनी घट के रही।।
क्रोधित हूँ मै स्वभाव से
निस्वार्थ, सकारात्मक भावना मेरी रही
हर शख्स को बढ़ता देखना चाहता
यही अन्तर्मन की इच्छा रही।।
कभी क्रोध से कभी प्रेम से
प्रतिभा की सब में खोज रही
निराश, मायूस न हो जीवन से
सबको सुख देने तमन्ना रही।।
संतोष, सुरछा पहला लछय
कभी दुर्भावना न ह्रदय रही
अपना किसी को बना न पाया
किस्मत मेरी कुछ ऐसी रही।।
गलती का पुतला होता इंसान
कुछ नया करने की इच्छा रही
मेरे साथ में दूसरे बढे़
सदा परोपकार की भावना ह्रदय रही।।