कुछ याद सम्भाले रक्खा है
कुछ याद सम्भाले रक्खा है
कुछ याद सम्भाले रखा है,
हमने दर्द को पाले रक्खा है
हँसते चेहरे केे चादर में,
दिल के छालों को रक्खा है
सब कहते है हम हँसते है,
हम अपने अंदर ही बसते है
अब सबको हम बताए क्या ,
हम तनहाई को कैसे डसते है
अब रोना धोना छोड़ दिया,
बस कहना सुनना छोड़ दिया
ना बात कोई अब चुभती है,
हमने तह तक जाना छोड़ दिया
लहज़ा जो हमने बादल लिया,
खुद से खुद का हीं कत्ल किया
जो बातों से बह जया करता था,
उन जज्बातों को दफन किया
अब चोटों से अपनी यारी है,
बस ज़ख्मो मे हिस्सेदारी है
उठना गिरना, गिरकर उठना,
बेमतलब की दुनियादारी है
अब पाना क्या और खोना क्या ,
खो जाने पर है रोना क्या ?
मुट्ठी में रेत जो थामी थी,
ना ठहरी तो पछताना क्या ?