पहली नजर
पहली नजर
आंँखें उनसे चार हुई तो, खिल उठी थी मन बगियाँ
प्रेम के पुष्प भी महक उठे थे, मोह-जाल में फस गई ये चिड़ियाँ।
लाज, शर्म सब भूल बैठी मैं, पलक न झपकाई ये अँखियाँ
चक्षु के रास्ते हृदय में उतरे, मीठी करते वो बतियाँ।
मुस्कान मोहिनी, कमल नयन है, खिल उठी थी हर कलियाँ
जतन करूँ, उपचार करूँ पर, एक सुने मेरी दोनों अँखियाँ।
मंजुल मूर्ति बने खड़े थे, क्या बताऊँ तुम्हें मैं सखियाँ
हार बैठी मैं सब कुछ उन पर, जब उनसे मिली थी मैं सखियाँ।
