कन्यादान
कन्यादान
बाप के कलेजे को विदा ए
अंजाम करता है
कैसा रिशता है विवाह का
दिल के टुकड़े कर..
वो बाप बेटी का कन्या दान करता है..
ले जाते है घर की रौनक को जो
फिर भी लाखो की वो मांग करता है
कगांल होकर भी बड़े दिल का है
वो बाप जो
बेटी का कन्यादान करता है...
हंसी से घर की खुशी बेमिशाल करता है
वो बाप जो कठोर है सबके लिए
पर अपनी बेटी से प्यार करता है
दबा कर सारे जज्बातो को
समाज की परंपरा के लिए
बेटी का वो कन्यादान करता है...
रिश्ता एेसा भी क्या बनाता है
हालात बनाकर तू ही ओ समाज
क्यो बेटी को
मजबूरी के कटघरे मे खड़ा कराता है
जाना चाहे जब वो घर तो
ससुराल को ही सिर्फ घर बताता है।
