चल कलम रे
चल कलम रे
चल कलम रे ! आज फिर से,
लिख दे भारत की तू जय।
जिसने लाखों युद्ध लड़े,
फिर भी हुआ न इसका क्षय।
सभ्यता, संस्कृति जहाँ पर,
दिखती रहती कण कण में।
मान होता शत्रुओं का,
चाहे घर हो या रण में।
हर बाशिन्दा भारत का,
सिंहों सा होता निर्भय।
चल कलम रे......
लिख हिमालय की जटाएं,
नदियां जिनसे बहती हैं।
सुन लो ये नदिया हमको,
बह बह के क्या कहती हैं।
सैकड़ो गाँवों शहर के,
पापों का हम करती क्षय।
चल कलम रे.......
मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर,
या हो चाहे गुरुद्वारे।
इतने धर्म यहाँ लेकिन,
मिलकर हैं रहते सारे।
बुरी नजर जिसने डाली,
बस उसकी हुई पराजय।
चल कलम रे..........ा