चलो आज जीने की आरज़ू करते है
चलो आज जीने की आरज़ू करते है
चलो किसी शाम चाय के नुक्कड़ पर
संग बैठकर कड़वी यादों को भुलाकर
खट्टी- मीठी यादों को साझा करते हैं
सही - ग़लत के पार एक दुनिया होती है
चलो आज वहीं चलते हैं।
एक- दूसरे को ग़लत नहीं
एक -दूसरे को समझने की
कोशिश करते हैं
सोशल मीडिया की
बनावटी दुनिया -से परे
किसी दूब के मैदान में,
पेड़-पौधों से बात करते हैं
पक्षियों की चहचहाहट को सुनते हैं
किसी बच्चे की भांति तितलियों को
भागकर पकड़ते हैं।
ढलते सूरज को हाथ पकड़कर निहारते हैं
घर पर माँ इंतज़ार कर रही होगी
चलो आज घर थोड़ा वक़्त पर चलते हैं।
टूटे हुए ख्वाब को पूरी लग्न से फिर बुनने
कि कोशिश करते हैं
चलो आज फ़िर जीने की आरज़ू करते हैं
चलो आज फ़िर जीने की कोशिश करते हैं
चलो आज किसी चाय के नुक्कड़ पर चलते हैं।