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Rohan kumar Danderwal

Tragedy

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Rohan kumar Danderwal

Tragedy

मज़दूर

मज़दूर

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कभी आत्मा का तो

कभी शरीर का सौदा होते 

देखा हैं हमने


कभी पूंजीवाद तो 

कभी सामंतवाद के आगे

ख़ुद को कुचलते देखा है हमने

  

घर की ज़रूरतों में कभी 

बच्चों की तो कभी 

ख़ुद की ख़्वाहिशों को 

मरते देखा हैं हमने

 

हम मज़दूर है साहब हमारा क्या है ?

कभी तड़पती धूप तो 

कभी कड़कड़ाती ठंड 

हर मौसम में ख़ुद का अपमान 

होते देखा है हमने।


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