बचपन
बचपन
सुख के दिन बीते रे भैया,
अब तो आती रुलाई
बचपन-जवानी कट गए,
बुढ़ापा कैसे कटेगा भाई।
शहनशाह थे बचपन में हम
जवानी में किया ढेरों काम,
बुढ़ापा आता देख कहते सब
'बच्चे बनते जा रहे हो अब'।
पर न माँ सी ममता,
न पिता सा प्यार
काहे का बचपन
जब शहँशाही न रही यार।
