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Mayank Kumar

Drama

4  

Mayank Kumar

Drama

तुम जब जिंदा थी

तुम जब जिंदा थी

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तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था,

ससुराल में ढेरों फूलों की खुशबू चमेली-सा था

सालियों के बेढंगे मज़ाक ख़ूब अच्छे लगते थे,

नेग के नाम पर बेवकूफ बनना मुझे भाते थे !

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


अब इन रस्मो का क्या करूं, जो मुझे काटते हैं,

ढेरों सितम के साथ एक अंधकार मुझे दे जाते हैं

उजाला खूब है आसपास मेरे, तब भी मैं तन्हा हूं,

तेरे बिन सारे जहान में, तिल-तिल मर रहा हूं !

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था ! !


अब ससुराल की गलियों में मेरे,

सासु मां की गोद सूनी लगती है

दामाद संग बेटी का साथ न होना,

उनकी नजरों को ख़ूब चुभती हैं,

मुझे अकेला देख वह अक्सर टूट जाती है

क्या बताऊँ मैं, वह ख़ुद से ही रुठ जाती हैं

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


बाबा के चौखट पर अब कदम कैसे रखूँ

तुम्हारे बिन उनके माथे को मैं कैसे चुमु

बाबा अब ठहरा तालाब-सा स्थिर बैठे हैं

तुम्हारी यादों के ज़िस्म में किसी पंछी-सा हैं

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


तुम्हारी गांव की नदी अक्सर बेचैन रहा करती हैं

छठ में तुम्हारे सूर्य को अर्घ्य न देना उसे खलती हैं

जब तुम अपने गाँव, छठ व्रत किया करती थी

ढेरों उमंग संग मेरे लिए दुआएं माँगा करती थी

मेरे मांथे पर दउरा रख घाट जाया करती थी

उस पल न जाने ऐ नदी कितनी उमंग में रहती थी

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


अब ससुराल में जाने की जल्दी मुझे नहीं सताती

घर से बहानेबाजी कर ससुराल आना नहीं हंसाती

तुम्हारी यादों में काला पड़ा चेहरा और नहीं देख सकता

मैं ससुराल में उजड़ा एक खंडहर में और नहीं रह सकता

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


ससुराल से लौटते वक़्त ससुर जी ने,

शगुन के तौर पर कुछ पैसे दिए

जिसे मैं आज जेब में नहीं रख सका,

रोते-रोते बस उनके सीने से लिपट गया,

किसी चांद को खिड़की पर पाया न देख

अमावस्या की काली रात-सा काला पड़ गया !

तुम जब जिंदा थी तो, सारे नेग भी जिंदा था !


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