एक उलझन
एक उलझन
यारों हमने माना है नौ और दो ग्यारह होते हैं,
पर एक उलझन है
हमें बताओ कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं,
दिन भर सोचा रात भर सोचा ये तो फिर भी समझ नहीं आया,
यूँ तो हर तरह का हिसाब और गणित हमने है सुलझाया ,
इसीलिए दोस्तों से पूछा व्हाट्स एप्प पर, मित्रों और रिश्तेदारों से
फेसबुक पर, कुछ को तो हमने अजी
एस टी डी और इंटरनेशनल भी फ़ोन मिलाया,
पर किसी ने नहीं सुलझाया कि
कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं,
ये तो हमने माना कि नौ और दो ग्यारह होते हैं
पर कहाँ और कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं,
कैसी ये उलझन है , कोई उपाय कोई उत्तर दे न पाया,
जीवन भर पढ़ते रहे कोई डिग्री कोई
डिप्लोमा ये हिसाब सुलझा न पाया
सुनो तो हमने हर तरह का योग करके देखा
और बहुत-बहुत देर तक ध्यान भी लगाया,
चारों तरफ हाथ-पैर हिलाये शायद उत्तर मिल जाये
और फिर सर को ऊपर नीचे दाएं बाएं घुमाया,
यारों बालों को भी नोचा और तो और
नाखूनों से गंजा सर खुजाया,
पर ये हिसाब समझ न आया,
पर हमें बताओ कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं,
हैं जी हिसाब और गणित की इंतहा हो गयी,
जिंदगी यही समझने में स्वाहा हो गयी,
ये कैसा अजब सवाल है या
जी का जंजाल है जो भी हो सवाल
बेमिसाल है,
सच तो ये है लोग अब हमारे घर आने से कतराने लगे हैं,
पीठ पीछे बतियाने लगे हैं कि
जो भी घर आता है उससे यही पूछते हैं
हमें बताओ कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं,
एक उलझन इक उथल -पुथल हुई है,
हुई है ऐसी भागम-भाग हमारी नीदें गयीं हैं भाग,
कैसे सुख-चैन से अड़ोसी-पड़ौसी सोते हैं,
हम अपने सवालों पे रात भर रोते हैं,
बताओ- बताओ कोई तो बताओ ना,कोई तो अब समझाओ ना,
ये सवाल नहीं चुनौती है जैसे कोई सीप में छिपा मोती है,
किस-किस से सवाल करूँ,कैसे सवाल करूँ,
ओ दुनिया के रखवाले ये सवाल सुलझाले ,
भाई मैं तो समझ ना पाया कि
एक और एक ग्यारह होते हैं कैसे एक और एक ग्यारह होते हैं।