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Nirupama Naik

Drama

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Nirupama Naik

Drama

वॉलेट

वॉलेट

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हर सुबह उनको अपनी जेब में

उसे रखते हुए देखा है

जैसे सिर्फ एक बटुआ नहीं

कोई चीज़ अनोखा है।


छोटा सा चमड़े का थैला है

पर बहुत कुछ समेटे रखता है

वक़्त-वक़्त पर वो भी

इंसान की फितरत परखता है।


देखा है मैंने उसे हर सुबह

उनके साथ जाते हुए

लौटता है उनके साथ

उनके हर पल का हिसाब बताते हुए।


वो एक मूक-साक्षी है

उनकी उठाई ज़िम्मेदारियों का

साथी है ऐसा जो ध्यान रखता है

उनकी कमाइयों का।


दाल -चावल से लेकर दवा-दारू तक

हर खर्चे का भार उसमे समाया है

बस वही जानता है उन्होंने

कैसे और कितना कमाया है।


माँ-पापा की दवाई हो या हो पत्नी का श्रृंगार

बच्चों के खिलौने हों या हो कोई त्योंहार

वो भरोसा है उनका के सब हो जायेगा

जैसे है वो उनका कोई जिगरी यार।


मैंने जब भी उसे

अपने हाथों में लिया है

उसने हमेशा मुझे

बहुत कुछ सिखाया है।


खोल के देखती हूँ

जब भी उसके भीतर

महक आती है मेहनत से बहे पसीने की

न कोई सुगंधित इत्तर।


वो बताता है मुझे

आज कितनी भाग-दौड़ रही उनकी

हर ज़रूरत और ज़िम्मेदारी को निभाने की

क्या तोड़ रही उनकी।


वो कहता है -मैं उसका हूँ

पर वो मुझे तुम सब पे लुटाता है

तुम सब की इच्छओं का जुगाड़

वो मुझी से जुटाता है।


वो कहता है शायद तुम जानती होगी

तुम्हारे पति ने जो भी खर्चाया

मगर सुन लो मुझसे उसने कभी

अपने लिए कुछ नहीं बचाया।


मैंने देखा है उसे घबराते हुए

कभी-कभार मेरे खाली हो जाने से

बताता नहीं किसीको मगर

सोचता रहता है किसी न किसी बहाने से।


मैं खाली हो जाऊं जब भी

तब तुम अपने हाथों में उनका हाथ लेना

वो संभल जाएगा मेरे ख़ालीपन से भी

बस तूम उनके साथ रहना।


मैं खो जाऊं कभी तो

उन्हें दूसरा दिला देना

फिर से उनके चेहरे पे

मुस्कुराहट खिला देना।


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