देवराज
देवराज
प्राचीन समय में स्वर्ग में
देवताओं के राजा थे इंद्र
इंद्र जिसका अर्थ
जिसने अपने सारी ज्ञानेद्रियों
को वश में कर लिया हो
जिसे देवताओं का राजा
कहा जाता था
जिसे स्वर्ग की राजगद्दी
सौंपी गई थी
मगर कहते है न
जब आपको कोई जिम्मेदारी
सौंपी जाती है
तो काफी महत्त्वकांक्षाएँ
बढ़ जाती है आपसे लोगों की
पर राजा इंद्र
सबसे अलग
उनपर सवार हुआ
सत्ता का फित्तूर
जैसे आज कल
राजनीति में होता है
नेताओं को
उन पर "आ बैल मुझे मार"
वाला मुहावरा
बिल्कुल सटीक बैठता है
क्योंकि वो जहाँ हो
और वहाँ कोई मुसीबत
है हो या आए
ऐसा हो ही नहीं सकता
कोई तपस्या कर रहा हो
और उन्हें परेशानी न को
कतई नहीं हो सकता
वो जरूर स्वर्ग पर आक्रमण
करने के लिए
भगवान की तपस्या कर रहा होगा
ताकि वो शक्तियाँ माँग ले
और स्वर्ग की गद्दी पर राज़ करे
फिर कोशिश की जाती थी
उनकी तपस्या को भंग करने की
साम, दाम, दंड, भेद द्वारा
अक्सर रूप की सुंदरी अप्सराओं
को इस काम में लगाया जाता था
प्रेम और यौवन का तीर चलाने के लिए
जब इतने से भी नहीं होता तो
किसी देवता को भेज दिया जाता
कि वो जा कर अपनी शक्ति से
उसका धैर्य तोड़े
और आखिर में जब सब प्रपंच
षड़यंत्र खत्म हो जाते है
तब वो अपना वज्र चलाते है
चाहे किसी अबोध बालक पर
ही क्यों न चलाना पढ़े
जैसे बाल हनुमान और ध्रुव
पर किया था उन्होंने
यहाँ तक की बेचारे कामदेव
जब देवी सती महादेव को
प्रसन्न करना चाहती थी
को जबरदस्ती भेज दिया
कि जा के उन पर अपने काम
का बाण चलाओ
कामदेव मरते क्या न करते
चलाया और महादेव की क्रोध
की अग्नि से भस्म हो गए
अब इस सब में अपना फायदा
सिर्फ देवराज इंद्र देख रहे थे
ताकि महादेव और सती का
मिलन हो और उनका पुत्र
देवताओं का सेनापति बनकर
राक्षसों से आजाद करवाए
स्वर्ण की गद्दी को जितना
जल्दी से जल्दी हो सके
और उनकी नजर औरतों
पर कभी भी सही नहीं रही
हमेशा उनको "काम" की
नजरों से देखते थे
माता अहिल्या को भी
उनकी वजह से
पाषाण बन कर रहना पड़ा
आप अक्सर इंद्र को
नई चाल चलते
कोई षड़यंत्र रचते हुए
देख सकते है
उन्हें देवराज की पदवी
और स्वर्ग की गद्दी तो मिली
पर साथ में ही मिला
घमंड, शक्ति प्रदर्शन और
अपने से दूसरों को कम आंकना...
