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Ghanshyam Sharma

Abstract

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Ghanshyam Sharma

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विजय का नया पंथ ले

विजय का नया पंथ ले

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न हार है, न जीत है,

न बैर है, न प्रीत है।


निपट एकांत चल रहा,

सखा न कोई मीत है।


मनुष्य मान ले यदि,

कि हारना मुझे नहीं।


जो बढ़ चुके मेरे कदम,

रुकेंगे अब कभी नहीं।


फ़िर कौन है जो रोक ले,

हे धीर तेरी राह को।


विजय प्रतीक्षा कर रही,

पसार अपनी बाँह को।


हताशा-हार छोड़ दे,

निराशा-नाता तोड़ दे।


विजेता बन, उभर मनुज,

दु:स्वप्न सारे तोड़ दे।


विश्वास की कलम ले थाम,

दृढ़ता का ग्रंथ ले।


छोड़ राह हार की,

विजय का नया पंथ ले।


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