उम्मीद
उम्मीद
कल ही झुमरू ने उसे पैसे देते हुए कहा थाअम्मा अब सप्ताह भर पैसे नहीं दे सकूंगा यह रख और पूरे 15 दिनों का खर्चा निकाल लेना। कहकर झुमरू शहर की ओर चला गया आसमान से गिरती बूंदे उसके आंसुओ से ज्यादा खारी नहीं थी देह की जर्जरता और बेटे का व्यवहार देख कुन्नमा की निराशा कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी बारिश के इन दिनों में पचास रु मैं 15 दिन कैसे गुजार हूं यही सोच सोचकर नोट पल्लू में दबाए वह सियाराम के केले के खेत की ओर चल पड़ी
कुन्नमा को देख सिया कहने लगा। अम्मा आज का माल बहुत पक्का है,बाजार में अच्छे भाव बिक जाएगा बोलो कितना दूँ ? कुन्नमा पचास रुपये के केले खरीद कर टोकरी उठाकर झोपड़ी के करीब पहुंची ही थी कि बारिश ने अपना जोर पकड़ लिया तेज बारिश में अपने जर्जर शरीर को संभालते हुए वह तेज कदमो से चलने लगी, लेकिन झोपड़ी में अंदर जाने से पहले ही केले भीग चुके थे।
गहरी सांस ले वह थोड़ी देर उम्मीद लगाए बैठी रही कि बारिश रुके तो केले बेच आऊताकि चूल्हा जल सके। लगातार बारिश को बरसते हुए आज तीन रोज हो चुके थेआसमान आज थोड़ा साफ नजर आ रहा था कुन्नमा उम्मीद के साथ उठी ओर केले की टोकनी की तरफ अपनी धुंधली नजरें दौड़ाई तो सभी केले गलने लगे थे वह टोकनी उठाकर चौराहे पर जा बैठी लेकिन उसे कोई खरीददार नहीं मिलाबैठे-बैठे आंखों से अश्रुधारा बह रही थी दो रोज से चूल्हा भी नहीं चला था और अब झुमरू भी पन्द्रह दिनों के बाद आएगायही सोचकर उसके उम्मीद का दिया बुझने लगा था वह टोकनी में पड़े काले होते केलो को देख अपने काले नसीब को भी कोस रही थी।
तभी वहां से एक लड़की गुजरीकुन्नमा को देख उसे बहुत दया आईउसने केले का मोल पूछा।धुंधली आंखों से नजरें उठाकर आश्चर्य से बोली बेटा पूरी टोकनी के सो रुपये पर तुम मुझे थोड़े कम रुपए दे देना,क्या?इन सड़े केलो के इतने रुपएकौन देगा अम्मा ? तभी उस लड़की को चौराहे पर गाय नजर आईउसने पूरी डलिया खरीदकर सारे केले गाय को खिला दियेभर पेट केले खाकर गाय उसे तृप्त नजरों से देख रही थी ओर वह लड़की कुन्नमा को पूरा मोल देकर संतुष्टि का अनुभव कर रही थीकुन्नमा उसे आशीर्वाद भरी नजरों से देख खाली टोकरी उठाकर घर की ओर चल पड़ीआज उम्मीद ना होते हुए भी उसका माल सही दामों में बिक चुका था।