बढ़ा रंगीन उभरा था आज पानी पे बुलबुला, बचाता भी इसे कैसे किसी पल तो मिटना था। बढ़ा रंगीन उभरा था आज पानी पे बुलबुला, बचाता भी इसे कैसे किसी पल तो मिटना था।
ओ बाल्यपन सहचरों, याद तुम्हारी ही आती है। ओ बाल्यपन सहचरों, याद तुम्हारी ही आती है।
अब और क्या शिकायतें होगी टूटे दरख़्तों का साया हो गया हूं अब और क्या शिकायतें होगी टूटे दरख़्तों का साया हो गया हूं
मैं थोड़ा सा नादान सही पर इतना भी बेकार नहीं। मैं थोड़ा सा नादान सही पर इतना भी बेकार नहीं।
एकदिन एक सांप को मिला सियासी काम नेता जी को डस लेना था उसे चुनावी शाम एकदिन एक सांप को मिला सियासी काम नेता जी को डस लेना था उसे चुनावी शाम
भीड़ लगी है यहां पर अपने आप को अच्छा दिखाने की। भीड़ लगी है यहां पर अपने आप को अच्छा दिखाने की।