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मेरे मोती सब कच्चे

मेरे मोती सब कच्चे

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अधखुली आँख से देखा हर ख़्वाब अधूरा था,

न तेरी बज़्म सूनी थी न मेरा दीन तन्हा था।


सरे राह ढूंढा किया तुझे हर एक चौखट पे,

किताबी नज़्म झूठी थी मेरा दीद सच्चा था।


बिखरी पड़ी हैं कड़ियाँ गुज़रे जमाने की,

मेरे मोती सब कच्चे मगर धागा तो पक्का था।


बढ़ा रंगीन उभरा था आज पानी पे बुलबुला,

बचाता भी इसे कैसे किसी पल तो मिटना था।


कि खुद को ख़ुदा कह दे ना समझ खिलौना,

कागज़ की कश्ती को न इतना दूर जाना था।


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