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Bharat Jain

Abstract

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Bharat Jain

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रात भर जागता रहा

रात भर जागता रहा

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रात भर जागता रहा,

मुसाफ़िर ताकता रहा,

रास्ता या वो मंज़िल,

साधू किसे सोचता रहा।

रात भर का मौन,

लिए है सुबह का शोर,

काली चादर बदल,

ओ सतरंगी आसमां,

उम्मीद बांधता रहा।

रात भर जागता रहा।

नाव, पतवार या लहर,

कठपुतियों का खेल,

संतूर की आवाज़,

किस के इशारों पर,

नाचता रहा।

रात भर जागता रहा।


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