STORYMIRROR

Bharat Jain

Abstract

4  

Bharat Jain

Abstract

राम भरोसे

राम भरोसे

1 min
287

राम भरोसे सांसे चलती

राम भरोसे खुलती आंख


राम भरोसे दिन होता है

राम भरोसे होती रात


राम भरोसे चींटी चलती

राम भरोसे धरती हिलती


राम भरोसे सूरज हंसता

राम भरोसे होती बरसात


राम भरोसे आग सुलगती

राम भरोसे गिरती ग़ाज़


राम भरोसे सागर चुप है

टिका हुआ है आकाश


राम भरोसे पंछी उड़ते

राम भरोसे पत्ते झड़ते


राम भरोसे हम-तुम मिलते

राम भरोसे जमघट लगते


राम भरोसे सांसे चलती

राम भरोसे खुलती आंख



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract