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Bharat Jain

Abstract

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Bharat Jain

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समय की चोरी करते रहना

समय की चोरी करते रहना

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कल के सूरज बुझ जाएंगे

खबरें बनकर

चलती घड़ियां रुक जायेंगी

किट-किट करकर


जागते रहना नई खाट पर

सोने वाले

एक-एक दिन काट रहा है

गिनने वाला


नए किले की नींव रखेंगे

जाने वाले

नई मशालों में आग भरेंगे

गाने वाले


नए रास्ते खोजते रहना

चलने वाले

डोर धनुष की खींच रहा है

छोड़ने वाला


समय किसी के साथ नहीं है

डरने वाले

समय किसी के पास नहीं है

रुकने वाले


समय की चोरी करते रहना

मांगने वाले

एक हाथ से सब छीन रहा है

देने वाला


--भारत


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