मैं थोड़ा सा नादान सही
मैं थोड़ा सा नादान सही
मैं थोड़ा सा नादान सही
पर इतना भी बेकार नहीं
पैगाम भेजा था अपनों सा
तुमने समझा लाचार कहीं
वैसे भी इस दुनिया में,
अक्सर ऐसा होता है
जो सच्चा होता है पथगामी
तिरस्कार उसे ही मिलता है
मैं थोड़ा सा नादान सही
पर इतना भी बेकार नहीं
कुछ समझो तुम भी पक्का,
कुछ मैं भी अब पक्का होता हूं
जो गरल मिला है मुझको तुमसे,
उसको घुट-घुट अब पीता हूं
मैं थोड़ा सा नादान सही
पर इतना भी बेकार नहीं
अगर नीलकंठ हो गया कभी
तो मिलना, तुमसे होगा पक्का
सच्ची मुच्ची बातें होंगी,
शायद होगा, तब बात पक्का
वही बात जो होनी थी
जो बनते-बनते बिगड़ गई
बनना था तेरा सखा भला
जो मैं न बन सका भला
मैं थोड़ा सा नादान सही
पर इतना भी बेकार नहीं।