क्या भूलूँ क्या याद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ




SUDHA ADES
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
ऐ मन मेरे
तू ही बता
स्वतंत्रता दिवस की
सांध्य बेला में
क्या भूलूँ क्या याद करूँ....
देश प्रेम से भरपूर
वे तेजस्वी चेहरे
या देश को बेचने को
आतुर मुखौटों के पीछे
छिपे भेड़िये...।
एक वे थे
जिन्होनें देश के लिए
कर दिया सर्वस्य न्योछावर,
एक ये है
जिन्होनें निज राष्ट्र को
लूट कर भर लिया घर।
भूल गए अपने ही
सहोदरों का बलिदान,
देश को विकासोन्मुख
बनाने की कसमें
माँ को दिया वचन।
घोटालों में फँसकर
भ्रष्टाचार, आतंकवाद,
जातिवाद को देकर बढ़ावा
जनता जनार्दन को
समझ कर गूँगा बहरा
सर्वदा गुमराह करते रहे।
विश्व के मानचित्र पर
देश की डावांडोल
स्थिति देखकर
राष्ट्र प्रेम की भावना
क्यों उद्देलित नहीं होती।
संवेदनाएं, भावनाएं
क्यों व्याकुल नहीं करती
क्या यांत्रिक विश्व में
निर्जीव तन-मन के साथ
तुम भी यांत्रिक बन गए हो ?
परभाषा के माध्यम से
पले बढ़े लोगों को
निज राष्ट्र से
क्यों होगा प्रेम ?
मातृभाषा बोलने में
आने लगी है अब शर्म
सिसक रही माँ भारती
देख निज पुत्रों के कर्म।
विराट सांस्कृतिक परम्पराओं वाले
देश के सुनहरे भविष्य की
सुदृढ़ नीव भी
अकुशल हाथों में
असमय ही होने लगी है क्षीण ।
ऐ मन मेरे तू ही बता
स्वतंत्रता दिवस की
सांध्य बेला में
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?