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Nehha Surana Bhandari

Inspirational

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Nehha Surana Bhandari

Inspirational

मज़हब

मज़हब

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अज़ान की आवाज़ से जब मेरी आँखें

खुलती है

तब माँ की पूजा की घंटी कानों में रस

घोलती है

कहीं मोगरे की अगरबत्तियाँ ख़ुशबू

बिखेरती है

तो कहीं लोबान की महक नज़र

उतारती है


कोई हाथ जोड़े तुझे नमन करे

तो कोई बाँह फैलाये तुझे गले

लगाये

वो सूरज या चाँद में तुझे ढूँढे

पर सबके दिल में तू ही समाये


कहीं दीवाली की रात सा तू रौशन

हो जाए

तो कभी ईद के चाँद सा बादलों में

छिप जाए 

तेरे लिए हरा और मेरे लिए केसरिया

पर दोनो ही रंगों में तू ही तो नज़र आये


मेरे दीये की लौ में तू जगमगाए 

तो कहीं ताबीज बन गले लग जाए

कहीं मोहरम सा तू दिल पिघलाता है

तो कहीं होली सा रंगों में मिल जाता है


ओम् हो या आमीन, कैसे फ़र्क़ करे?

सजदे में तेरे दोनो के ही सर है झुकते 

कोई फूल बरसाए कोई चादर चढ़ाये।।


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