मेरी पहचान
मेरी पहचान
वो पूछते है मेरी पहचान मुझसे,
मैं हँस कर सिर्फ़ कहती हूँ यही उनसे..
ये दहलीज़ जिसे तू अपना बताता है,
हर सुबह मिट्टी की चादर से
मेरे हाथों ही उभर कर आता है।
तुमसे पहले तुम्हारा दिल,
मुझे ही तुम्हारा हाल सुनाता है।
जो मैं ना रहूँ एक पल के लिए भी,
तो कहाँ तेरा रूमाल, तेरा चश्मा मिल पाता है।
पूछो उस गरम तवे से मेरी ऊँचाइयों का सबब,
जिस पर चाँद सी गोल रोटियों की दावत तू बटोरता है।
ना मिले जवाब तो देखना
अपने दिल के टुकड़ों की तरफ़,
जिनका अस्तित्व मुझसे ही तो आता है।
जब तू अपने ख़्वाबों को पाने की उड़ान भरता है,
पलट कर देखना, क्या पता वो मेरी दुआओं का ही नतीज़ा है।
जिस सुकून का दर्जा तुम अपने तकिए को देते हो,
वो शायद मेरी बाँहों का हार ही तो होता है।
जब ज़माने से लड़, जिस छत के नीचे तुम आते हो,
उसे घर बना मुझसे ही तो पाते हो।
तेरे क़द को कभी छू ना सकूँ शायद मैं,
पर अपने क़दमों तले ज़मीं को मुझसे ही तो हरा बना देखते हो।
मेरी शिनाख्त अपनी रूह में करना,
जिसे तसल्ली से मुस्कुराता हुआ मुझसे ही तो पाते हो।।