किस काम के है ?
किस काम के है ?
तारे जो अंधेरी रात में ना टिमटिमायें,
किस काम के है
सूरज जो तुम्हें उगना ना सिखाए,
किस काम का है
कोयल जो अपनी वाणी पर इतराए,
किस काम की है
बरगद जो छाँव ना दे पायें,
किस काम का है
पत्थर जो क़िले, छेनी से डर जाये,
क्या कभी सुंदर मूरत बन पायें ?
साहस जो हार से घबराए,
क्या कभी पर्वत चढ़ पायें ?
अभिमान जब स्वाभिमान में बदले,
शायद तभी जीना सिखायें !
