डर को डराएँ
डर को डराएँ
डर ने हमें डराया बहुत
अपना हुक्म चलाया बहुत
आँखें दिखाकर बड़ी-बड़ी
उसने हमें धमकाया बहुत।
वो बोला जोर से
काला होता है अँधेरा,
भयानक और घुप्प
काली रात में होते हैं
काले साये,
शैतानी और एक दम चुप।
न निकलना घर से,
इस काली परछाई में
छुपे रहना दुबक के,
तुम अपनी रजाई में।
पर यकीन की एक
चिंगारी दिल में दबी थी
धीरे-धीरे ही सही
कुछ तो कह रही थी।
एक रात मुट्ठी में बंद
वो कुछ जुगनू ले आई
काली सी उस रात में
उम्मीदों की टोर्च जलाई।
जब डर गया नीचे
और हम बढ़े ऊपर
आँखे फटी की फटी रह गई
सितारों से भरा आसमान देखकर।
डर अब कहीं दूर
टूटे तारे के साथ टूट गया
और यकीन का सूरज
क्षितिज के कमान से छूट गया।
काले से कैनवास पर
उम्मीदों के रंग बिखर गए
उस सुबह लगा
डर छूट गया है पीछे,
और आगे हम निकल गए।
