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Amit Kumar

Inspirational

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Amit Kumar

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आज़ादी

आज़ादी

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पिंजरे में रहना तो 

पक्षियों को भी नहीं भाता,

फिर हम इंसानों की 

बात क्या करे,

कौन हैं जो अपने को 

क़ैद में रखना पसन्द करता है,

जवाब हम सब जानते है 

कि ऐसा कोई नहीं है,


फिर एक बहुत लंबी लाइन है 

जिसमे अपनी आज़ादी को भूल कर ,

स्वयं को दूसरे की आज़ादी 

के लिए समर्पित करती है,

और बिना कोई चूक किये 

उस समर्पण को निभाती है,

जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ,

हमारी माँ, बहनों, बीवी..

बेटियों और औरत कहे 

जाने वाले हर उस रूप की,

जिसका हम शोषण कर 

रहे चाहे-अनचाहे 

हर जगह ये आज़ादी 

बाधित पाई जाती है,


क्या हमने कभी सोचा है 

ऑफ़िस में ज़रा लेट पहुँचने पर 

बॉस हमारे ज़रा रियायत कर भी दे ,

लेकिन सुबह चाय समय पर 

न मिलने हम जो इसकी 

ऐसी तैसी करते है,

और वो मूक बनी 

सिवाय मुआफ़ी की तलबगार के 

कुछ और की इच्छा 

ज़ाहिर भी नहीं करती,


ये तो बहुत छोटा सा नमूना है,

जो मैंने पेश किया है,

ऐसे बहुत से कारनामे है,

जिनको हम किसी न 

किसी रूप में,

रोज़ अपने घरों में ,

और आस - पास बड़ी 

खूबसूरती से अंजाम देते है,

काश! हम आज और 

अभी उसके बहते हुए 

एक आँसू के समर्पण को 

भी रोक सके तो मैं समझूँगा,

कि वाकई हम आज़ादी 

मनाने के सही मायने में हक़दार है

           


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