तुम्हें साधुवाद
तुम्हें साधुवाद
कठिन शारीरिक मेहनत के पर्याय हैं वो,
झुलसाती धूप को सह ले वह लौह स्तंभ हैं वो।
कटी फटी रफू की कमीज, कई कीलों से गुदी हुई काम चलाऊ चप्पल,
सिर पर अंगोछा जो छाँव दे, बोझ की चुभन कम करें और पसीना भी सुखाएं।
चींटी की तरह अपने वजन से कई गुना ज्यादा वजन उठाते हैं,
गधे की तरह चुपचाप बिना आलस के बदन तोड़ मेहनत करते हैं।
पेट की भूख तङपाती है, रुलाती है, पर कभी तोड़ नहीं पाती,
घनघोर अंधियारी रातें डरा नहीं पाती, मूसलाधार बारिश उजाड़ नहीं पाती।
ये मजदूर हैं, खुद की किस्मत मेहनत की स्याही से लिखते हैं,
बिना कुछ अपने पास रखे, अपनी आमदनी गाँव अपने घर भेज देते हैं,
तोड़ते रात दिन पत्थर हैं, पर वो टूटते नहीं, छोटी छोटी इच्छायें पूरी करते हैं,
खुशियाँ भी भरपूर बरसती हैं इन पर, सच्चे दिल से ईमानदारी से ।
मुस्कुराती हुई पत्नी जब सुघड़ता से घर में त्योहार मनाती है,
माता पिता आंगन में बैठ सर्दी की धूप में जब इनके गुण गाते हैं
बच्चे जब कक्षा में शाबाशी पाते हैं, सीना इनका गर्व से चौड़ा होता है।
ये मजदूर हैं, हर एक नींव में पत्थर लगाने वाले, ऊंची गुम्बद बनाने वाले
कल्पना को आकार देने वाले, हमारे सृजनकर्ता! तुम्हारे परिश्रम को शत शत प्रणाम!
तुम्हें साधुवाद!