स्वः प्रेम ही सटीक है
स्वः प्रेम ही सटीक है
जब से जमाने ने तुम्हारा व्यापक व्यापार बना दिया, तुम्हें बिकाऊ कर दिया,
इश्क़, तुम वास्तव में दिल में नहीं दिमाग में हमेशा से पहले आते हो।
हर दिन महबूब को लुभाने, दिल में उसके दाखिले के लिए,
नकली समानों से, भावनाओं के दिखावे की दुकान सजा दिया।
हीरे की अंगूठी का प्रभाव, केवल सच्चे जज्बात से ज्यादा है,
सालाना विदेश भ्रमण , पॉश कालोनी में आलीशान घर का होना जरूरी है ,
महंगी गाड़ी, हर दिन पार्टी, तभी रहे प्रेम कायम यही मानना है।
दिल की मासूमियत, कोमल भावना कहीं दब सी गयी,
जब से दिमाग ने प्यार को तौल इसका हिसाब लगा लिया ।
सच है, किसी और को नहीं स्वः प्रेम में ही निज उन्नति निहित है।
