मोबाइल फोन और उलझनें
मोबाइल फोन और उलझनें
कटु मगर सत्य है !
आज का आधुनिक इंसान
पूर्णतया तकनीकी स्रोतों का
ग़ुलाम बन चुका है ।
ऐसा अजब समय
आ चुका है कि लोग,
विशेषकर किशोरावस्था में
केवल मोबाइल फोन से ही
अधिकाधिक समय जुड़कर
रहना पसंद करते हैं।
इसमें कोई
आश्चर्य की बात नहीं !
आज इंसान
सबकुछ बटन दबाकर ही
पा लेना चाहते हैं ।
एक तरफ तो हमें
तकनीकी विकास का
अनन्य 'उदाहरण' देखने को मिलता है,
तो दुसरी तरफ किशोर-किशोरियाँ
मोबाइल फोन की 'लत' से
क़शमक़श भरी ज़िंदगी की
मंझधार में फँसे हुए
लाचार नज़र आते हैं... !
आज यांत्रिकता
इतनी बढ़ चुकी है
कि एक ही छत के
नीचे बसनेवाले लोग
एक दूसरे से
तुलनात्मक रूप में
कम, मगर मोबाइल फोन पर
दुसरों से
अधिकाधिक वार्तालाप किया करते हैं ।
इसमें कोई शक़ नहीं है
कि आज का आधुनिकीकरण
इंसानों के जीवन में
नई-नई उलझनें
पैदा कर रही हैं,
जिनसे निपटना
नामुमकिन-सा लगता है।
