हमारी पहली कमाई आम की बहार
हमारी पहली कमाई आम की बहार
एक तो अपने बलबूते पर कभी कुछ कर नहीं होता बहुत ही हिम्मत करते हैं। जब कुछ नया करने निकलते हैं और वह जिंदगी में पहली बार होता है तो कुछ तो मन में बहुत सारे सवाल होते हैं पता नहीं चलेगा या नहीं ऐसा ही मेरे साथ भी था।
मेरी पैथोलॉजी लैब का पहला दिन इसमें मैं सोच रही थी क्या होगा पेशेंट आएंगे या नहीं। मगर बहुत पेशेंट आए और पहला दिन सफल रहा और उसकी कमाई का मैंने जो किया
वह इस कविता में हाजिर है।
समय था सुहाना सुहाना।
मन में था उत्साह अनेरा।
क्योंकि हमने आज की थी
जिंदगी की पहली कमाई।
सपना हमने कभी देखा था।
फिर वह सपना आज पूरा हुआ।
दिन पहला था उत्साह अनेरा था।
मरीजों की भीड़ थी उनका हम पर विश्वास था।
हमको भी उनके विश्वास पर खरा उतरना था।
काम पूरा कर वो हमारा घर को निकलना।
रास्ते में लगंडे आम से भरा एक ठेला का दिखना।
आंखों में खुशी की लहर का दौड़ना।
इस गांव में मौसम का पहला आम था।
बच्चों के आंखों में आम के लिए चमकता चेहरा नजर आया।
हमने थोड़ा पैसा भगवान के लिए निकाल लिया।
बाकी सब पैसे से आम का ठेला पूरा घर डलवा दिया।
सब ने आम को चाव से खाया
देख मेरा मन बहुत हर्षाया
लगा जिंदगी की पहली कमाई को सही काम में लगाया।
