सात फेरों का चक्कर
सात फेरों का चक्कर
हल्का सा अमृत देकर जिसने
जिंदगी भर जहर पिलाया है
वो घरवाली और उसका बाप कहलाया है
सात फेरों के चक्कर में जिसने खुद को उलझाया है
उसनें फिर जीवन भर चक्कर ही खाया है
दफ्तर में साहब से ठनती
घर में मेमसाहब से
एक दिन हमने कह दिया "मुक्ति दो"
वे बोली "हम कोई अंग्रेज नहीं जो मुक्ति दे जाएं
और फेरों में चक्कर तो ऐसे लगा रहे थे
जैसे किसी की बीबी भगा रहे थे
क्या गाड़ी छूट रही थी"
हमने कहा "छूट जाती तो अच्छा होता
इस तरह गृहस्थी के सागर में तो न खोता
बस अब आप इस झंझट से निकालिये "
वे बोली "अब तो आप तभी निकलेंगे
जब आपके प्राण निकलेंगे
और यदि शास्त्रों में लिखा सच है तो मैं और मेरी गृहस्थी का शेर सात जन्म तक निगलेगा
सात जन्म की बात सुनकर चक्कर आ गया
अरे ये सात फेरे तो सात जन्म खा गया।